पेट की जलन की समस्या पेट की जलन की समस्या

अगर आपको भी परेशान करती है पेट की जलन की समस्या तो जानिए इसकी रोकधाम के उपाय – Pet Me Jalan Ho To Kya Kare in Hindi 

पेट की जलन की समस्या

क्या आपके पेट में गैस बनती है? खाना खाने के बाद पेट फूल जाता है, सीने में जलन रहती है, या खाने के बाद खट्टी डकारें आती हैं? तो समझ लीजिये  आपको है  पेट में जलन की समस्या, अब पेट की जलन की   समस्या में क्या करना चाहिए ? आज हम इस लेख में हम बात करेंगे इसके क्या कारण होते हैं, इसके लक्षण क्या होते हैं, किन जातियों से इस बीमारी का पता लगाया जाता है, और कैसे इस बीमारी का इलाज किया जाता है। Pet me jalan ho to kya kare जानिए हिन्दी में.

पेट के जलन की समस्या : परिचय और प्रकार (pet me jalan ho to kya kare)

पेट की सबसे अंदरूनी लेयर पर कई कारणों से सूजन आ जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में गैस्ट्राइटिस कहते हैं। गैस्ट्राइटिस दो प्रकार की होती है: क्यूट और क्रॉनिक। अचानक सूजन को एक्यूट गैस्ट्राइटिस कहा जाता है, और अगर गैस्ट्राइटिस का इलाज लंबे समय तक न हो पाया तो उसे क्रॉनिक गैस्ट्राइटिस कहते हैं। गैस्ट्राइटिस चार प्रकार की होती है:

  • पैन गैस्ट्राइटिस, जो प्रमुख रूप से संपूर्ण पेट को प्रभावित करती है।
  • सेंट्रल गैस्ट्राइटिस, जिसमें पेट के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है।
  • ठंड प्रोसेस गैस्ट्राइटिस, जिसमें पेट के एसिड के लंबे समय तक के संपर्क में रहने से पेट की अंदरूनी परत को नुकसान होता है।
  • रेजर गैस्ट्राइटिस, जिसमें पेट की लेयर को नुकसान के साथ-साथ खून भी आ जाता है।
pet me jalan ho to kya kare

अब हम बात करेंगे कि गैस्ट्राइटिस या एसिडिटी या पेट के जलन की समस्या  किन कारणों से हो सकती है

  • एसिडिटी के कारणों में सबसे पहले जीवनशैली यानी आपकी जो लाइफस्टाइल है, उससे संबंधित महत्वपूर्ण सेंटर और खराब खानपान यानी डाइटरी हैबिट्स शामिल हैं।
  • डाइटरी हैबिट्स जैसे ब्रेकफास्ट नहीं करना, लंबे समय तक भूखे रहना, चाय या कॉफी का अत्यधिक सेवन करना, कोल्ड ड्रिंक्स, जूस अत्यधिक लेना, फास्ट फूड या तली हुई चीजें ज्यादा खाना—इसके कारण गैस्ट्राइटिस हो सकती है।
  • लाइफस्टाइल हैबिट्स में धूम्रपान और शराब का बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने से भी गैस्ट्राइटिस हो सकती है। तनाव भी एसिडिटी का कारण है। जब व्यक्ति तनावग्रस्त होता है, तो उसका डाइजेस्टिव सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पाता।
  • हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बैक्टीरिया भी आम तौर पर हमारे पेट में सूजन का कारण होता है और अक्सर दूषित भोजन और पानी में पाया जाता है। इसका इंफेक्शन पेट में अल्सर का महत्वपूर्ण कारण होता है।
  • नॉनस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स जैसे एस्पिरीन, पेरासिटामोल, डाइक्लोफिनेक आदि गैस्ट्राइटिस हो सकती है। यह दवाइयां आम तौर पर दर्द और सूजन कम करने के लिए उपयोग में ली जाती हैं, परंतु इसके नियमित उपयोग से पेट में घाव भरने की संभावना बढ़ जाती है।
  • इसके अलावा गैस्ट्राइटिस के कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे बैक्टीरियल, फंगल, और वायरल इंफेक्शन, खैर पी या बाय रिफ्लक्स गैस्ट्राइटिस।
  • गैस्ट्राइटिस में बाय यानी कि पित्त, पित्त की थैली अर्थात बॉब्स निकलकर भोजन की थाली में चला जाता है और वहां सूजन पैदा कर सकता है।

क्या करेंक्या न करें
1. ठंडा दूध पिएं – पेट में ठंडक पहुंचाएगा।1. चटपटा और मसालेदार खाना – पेट में और जलन बढ़ेगी।
2. नारियल पानी पिएं – पेट को राहत देगा।2. ज्यादा चाय और कॉफी – एसिडिटी को बढ़ा सकते हैं।
3. अदरक का रस पिएं – एसिडिटी कम करने में मददगार।3. तेल में तला हुआ खाना – पेट की जलन और बढ़ सकती है।
4. सादा और हल्का खाना खाएं – जैसे खिचड़ी या दलिया।4. खट्टे फल और जूस – एसिडिटी को और बढ़ा सकते हैं।
5. थोड़ा-थोड़ा करके खाएं – एक बार में ज्यादा खाने से बचें।5. ज्यादा भारी खाना – पचने में मुश्किल होगा।
6. एलोवेरा जूस पिएं – पेट की जलन शांत करने के लिए।6. धूम्रपान और शराब – ये पेट की समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।
7. सौंफ और जीरा चबाएं – पेट को ठंडक मिलेगी।7. बहुत तंग कपड़े पहनना – पेट पर दबाव से जलन हो सकती है।

गैस्ट्राइटिस  या पेट के जलन की समस्या के क्या-क्या लक्षण होते हैं

  • गैस्ट्राइटिस का सबसे प्रमुख लक्षण है पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, बेचैनी या जलन का होना। इसके अलावा गैस्ट्राइटिस के अन्य लक्षण भी होते हैं जैसे उल्टी आना, उल्टी जैसा लगना जिसे हम लोग जिया कहते हैं, वजन कम होना, भूख कम लगना, थोड़ा सा ही खाने पर पेट भरा-भरा सा लगना और डकारें आना।
  • अगर गैस्ट्राइटिस है तो पेट की अंदरूनी लेयर से खून बहने लगता है, और इसके कारण मरीज को कभी-कभी खून की उल्टी या फिर काले रंग का मल भी पास हो सकता है, जिसे हम अलीना बोलते हैं। मरीज को खून की कमी के कारण अंधेरा हो जाता है और अनिर्णय के साथ अत्यधिक थकावट, सांस लेने में तकलीफ या धड़कन तेज होना जैसे लक्षण आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत ही अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

गैस्ट्राइटिस या एसिडिटी या पेट के जलन की समस्या से बचाव के लिए क्या किया जा सकता है

सबसे पहले हम बात करेंगे डाइटरी उपचार के बारे में। इसमें मरीज को एसिड बनाने वाले या पेट की सूजन बढ़ाने वाले फूड आइटम्स का उपयोग कम करना चाहिए या फिर बंद ही कर देना चाहिए, जैसे कि चाय-कॉफी, स्पाइसी फूड आइटम्स, फाइट फ्रूट, ब्रेड, पास्ता, अचार आदि।

 इसके अलावा मरीज को साइट्रस फ्रूट्स जैसे संतरा, नींबू, फ्रूट जूस, खट्टी छाछ या खट्टा दही तुरंत बंद कर देना चाहिए। कई मरीजों में दूध या दूध से बने पदार्थ भी पेट में सूजन बढ़ाते हैं। इनका सेवन ना करने से मरीज को तुरंत लाभ हो सकता है।

pet mein jalan ho to kya karen

अब बात करते हैं ऐसे खाने के बारे में जिससे गैस्ट्राइटिस में राहत मिलती है

 मरीज फाइबर युक्त पदार्थों का सेवन बढ़ाना चाहिए जैसे कि सलाद, हरी पत्तेदार सब्जियां, साबुत अनाज आदि। इसके अलावा मरीज को लिमिटेड मात्रा में ग्रीन टी, लहसुन, अदरक, हल्दी, नारियल पानी का सेवन भी करना चाहिए। 

मरीज को रोज सुबह उठकर ब्रेकफास्ट जरूर करना चाहिए क्योंकि खाली पेट पीने से भी गैस्ट्राइटिस के लक्षण दिखने लग जाते हैं। इसके अलावा देर रात तक खाना खाने की आदत को बंद कर देना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि सोने के 3 घंटे पहले ही भोजन कर लिया जाए।

इसके अलावा मरीज को तीन से चार लीटर पानी रोजाना पीना चाहिए, रोज एक्सरसाइज करनी चाहिए, तनाव को कम करना चाहिए, और अधिक उम्र, शराब का सेवन और ड्रिंक्स का सेवन भी बंद कर देना चाहिए। मरीज को 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद अवश्य लेनी चाहिए और दर्द की दवाइयां अपने डॉक्टर से सलाह के बाद ही लेनी चाहिए।

जब मरीज डॉक्टर के पास जाता है, तो 90% मरीज के क्लीनिकल एग्जामिनेशन और हिस्ट्री से गैस्ट्राइटिस का डायग्नोसिस हो जाता है। इसके अलावा डॉक्टर कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट करवाते हैं जैसे कि सीबीसी (कंप्लीट ब्लड काउंट), जिससे शरीर में खून की मात्रा या कोई इंफेक्शन का पता चलता है, ब्रेड टेस्ट, और लाइफ टेस्ट भी करवाया जा सकता है।

 इसके अलावा मामले की जांच भी कराई जाती है और मल में खून दिखाई देने पर लिवर फंक्शन टेस्ट भी कराया जा सकता है। गैस्ट्राइटिस को डायग्नोस करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है गैस्ट्रोस्कोपी, जिसे आम तौर पर पेट की दूरबीन से जांचा जाता है।

 इसकी मदद से डॉक्टर मरीज के पेट में दूरबीन डालकर गैस्ट्राइटिस की गंभीरता को जांचते हैं और साथ ही उसमें कोई इरोजन या छाले हैं या नहीं, यह भी भांप लेते हैं।

फिर यहां से एक टुकड़ा जांच, अर्थात बायोप्सी के लिए जाता है और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी के विशिष्ट टेस्ट जैसे रैपिड टेस्ट भी किए जाते हैं। इसके अलावा पेट की अल्ट्रासाउंड (सोनोग्राफी) और एक्स-रे भी डॉक्टर एडवाइस कर सकते हैं।

अब बात करते हैं गैस्ट्राइटिस के इलाज के बारे में

  • पचास प्रतिशत से अधिक मरीजों को इलाज की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। मरीज केवल खानपान और जीवनशैली में बदलाव से ही इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। यदि मरीज को हेलिकोबैक्टर पाइलोरी इंफेक्शन है, तो बैक्टीरिया को मारने के लिए एंटीबायोटिक और एंटासिड, एंटासीड जैसे दवाइयां दी जाती हैं।
  • गैस्ट्राइटिस के इलाज में जीवनशैली में बदलाव, दवाइयां और रोटीन की जांच को शामिल किया जाता है। अक्सर मरीज पेट के अंदर की सूजन को रोकने के लिए दवाइयों का सेवन करते हैं और डॉक्टर के अनुसार इलाज के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव को अपनाते हैं।

निष्कर्ष

गैस्ट्राइटिस एक आम पेट की समस्या है, जिसे सही समय पर पहचान और उपचार से आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके विभिन्न प्रकार और कारणों को समझना, जैसे कि जीवनशैली, खानपान की आदतें, तनाव, और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण, आपके उपचार और प्रबंधन की प्रक्रिया को बेहतर बना सकता है। गैस्ट्राइटिस के लक्षणों की पहचान करना और उचित डाइटरी व लाइफस्टाइल सुधार करना इसकी गंभीरता को कम कर सकता है।

निदान के लिए डॉक्टर से सलाह लेना और आवश्यक परीक्षण कराना इस बीमारी के सही इलाज के लिए महत्वपूर्ण है। गैस्ट्राइटिस का इलाज आमतौर पर खानपान में बदलाव, दवाइयों और जीवनशैली में सुधार से होता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और आवश्यक उपचार का पालन करके आप गैस्ट्राइटिस से राहत पा सकते हैं और एक बेहतर स्वास्थ्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। यदि लक्षण बने रहें या गंभीर हो जाएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें ताकि उचित चिकित्सा की जा सके।

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