भगंदर (फिस्टुला) क्या है? भगंदर (फिस्टुला) क्या है?

क्या आप भी इन लक्षणों से है परेशान, तो पता करें कि कहीं भगंदर के तो नहीं शिकार?

भगंदर (फिस्टुला) क्या है?

भगंदर (फिस्टुला) क्या है?

आपके गुदाद्वार के आसपास की छोटी ग्रंथियों में अचानक से इंफेक्शन और सूजन आ जाए, तो यह साधारण सा दिखने वाला फोड़ा कैसे बन सकता है एक खतरनाक फिस्टुला, जिसे आम भाषा में भगंदर कहते हैं। इस समस्या का समय रहते इलाज न किया जाए तो यह आपके जीवन पर कैसे असर कर सकता है, यह जानना बेहद जरूरी है। आइए, समझते हैं इसके कारण, लक्षण और अत्याधुनिक उपचार विधियों के बारे में, जो आपको इस परेशानी से छुटकारा दिला सकती हैं।

एनल ग्लैंड्स और उनके कार्य


जो हमारा गुदाद्वार होता है (एनल कैनल), उसके आसपास कुछ ग्लैंड होती हैं जिनका काम होता है सिक्रीशन करना है।  वहां पर  यह  ग्लैंड कुछ खास तरीके के लुब्रीकेंट को सीक्रेट करते है। लेकिनवक्य आप जानते है कि कभी-कभी ग्लैंड में इंफेक्शन हो जाता है और इंफेक्शन की वजह से वहां एक छोटा सा फोड़ा बन जाता है। अगर यह फोड़ा शुरुआत में ठीक नहीं हुआ तो यह बढ़ जाता है और जब टूटता है तो इसका एक सिरा एनल कैनल के अंदर और एक सिरा बाहर स्किन पर रहता है। यह एक तरीका होता है जिससे इंफेक्शन ट्रैक बनाता है, जिसे हम लोग फिस्टुला कहते हैं या आम भाषा में भगंदर कहते हैं।

फिस्टुला के कारण और लक्षण

बेशक  इसकी शुरुआत एक्ने की वजह से होता है, लेकिन यह भारी इन्फेक्शन का रूप ले सकती है।  एनल ग्लैंड का फ़ैलाव एनल के चारों तरफ होता हैं। अगर इन ग्लैंड की बढ़ोतरी होती है, तो कभी-कभी वहां पर इंफेक्शन हो जाता है और वह इंफेक्शन बढ़ते-बढ़ते फिस्टुला का रूप लेता है। इसके बाद वह फोड़ा बड़ा हो जाता है और ट्रैक बन जाता है।

यह छोटे-छोटे इंफेक्शंस से शुरुआत होती है। कभी-कभी इंफेक्शन बढ़ जाता है तो यह इंफेक्शन की वजह से होने वाली प्रॉब्लम है। जिन लोगों को काफी लंबे समय से प्रॉब्लम होती है, उनमें यह होने की संभावना बढ़ जाती है। एनल के अंदर जब इन्फेक्शन होगा, तो अगर आपको डायबिटीज होती है, तब भी यह इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है।

एनल फिस्टुला(भगंदर )के प्रकार 

एनल फिस्टुला को हम लोग जो दो अलग हिस्सों में बांट सकते हैं, और यह अपनी मांसपेशियों के रिलेशन में करते हैं। चुकी यह मांसपेशियों बहुत सारी होती हैं, तो उससे हमारे मल त्यागने की प्रक्रिया पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। लेकिन कुछ मांसपेशियां होती हैं जिनका डैमेज होने से पेशंट की कोंटिनेंट्स की प्रक्रिया काफी कॉन्प्रोमाइज़ होती है।

  • फिस्टुला को हम लोग आम भाषा में सिंपल और कांप्लेक्स में बांट  सकते हैं। 
  • सिंपल फिस्टुला होते हैं जो कि मांसपेशियों के निचले हिस्से को क्रॉस करते हैं। इन मांसपेशियों के कटने से या उनके डैमेज होने से मल त्याने की प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता और फिस्टुला का इलाज आसान होता है। 
  • कांप्लेक्स फिस्टुला में मांसपेशियों के ऊपर के हिस्से को क्रॉस करना होता है और इसका इलाज थोड़ा कठिन होता है।

भगंदर का पता कैसे कर सकते हैं?

डॉक्टर के अनुसार, फिस्टुला की शुरुआती स्टेज में मरीज को इसका पता नहीं चलता। आमतौर पर मरीज इसे एक साधारण फोड़ा समझ लेते हैं। जब फोड़ा फट जाता है और पस बाहर निकलता है, तो मरीज को राहत मिलती है और वह मान लेते हैं कि समस्या खत्म हो गई है। लेकिन, असल में पस एक लंबी सुरंग बना चुका होता है।

कुछ महीनों बाद जब दर्द और पस निकलने की समस्या बढ़ जाती है, तब मरीज डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर कई बार शुरुआत में फिस्टुला का पता नहीं लगा पाते और बस पस निकालकर मरीज को भेज देते हैं। अक्सर, सही जांच के लिए एक्स-रे (X-Ray) या एमआरआई (MRI) की जरूरत पड़ती है, ताकि फिस्टुला की सच्चाई का पता चल सके।

 भगंदर का ट्रीटमेंट 

फिस्टुला का ट्रीटमेंट सर्जरी के द्वारा होता है। बिना सर्जरी के इसका इलाज संभव नहीं है। आधुनिक तकनीक जैसे वीडियस, लेजर ट्रीटमेंट, लिफ्ट तकनीक, स्टेम सेल्स का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों की ख़ासीयत यह है कि इनमें मांसपेशियों को क्षति पहुंचाए बिना फिस्टुला का इलाज किया जाता है।

इसके इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए। जितना जल्दी हो सके, डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए और उचित इलाज करवाना चाहिए।

भगंदर के दौरान खाने पीने में कैसे परहेज़ रखें 

  • कुछ लोगों का मानना है कि भगंदर की बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकती, लेकिन सही खानपान और जीवनशैली अपनाकर इस बीमारी से राहत मिल सकती है।
  •  अगर आप फाइबर और प्रोटीन से भरपूर खाना खाएं, तो इससे काफी फायदा हो सकता है। 
  • आयुर्वेदिक इलाज भी भगंदर की समस्याओं को कम करने में मदद करता है, और कई आयुर्वेदिक डॉक्टर तो इसे पूरी तरह से ठीक करने का दावा भी करते हैं।
  • आयुर्वेद में भगंदर का इलाज करने के लिए त्रिफला सेंक का इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि में त्रिफला से प्रभावित हिस्से को अच्छे से साफ किया जाता है। डॉक्टर मानते हैं कि भगंदर की समस्या में अगर आप गुदा के आसपास के हिस्से को साफ-सुथरा रखें, तो इससे काफी लाभ होता है।
  • गर्म पानी में कुछ जड़ी-बूटियां डालकर भगंदर का इलाज किया जाता है। मरीज को गर्म पानी के टब में बिठाया जाता है, जिससे प्रभावित हिस्से की अच्छे से सिंकाई हो जाती है। इससे मांसपेशियों का तनाव कम होता है और दर्द भी घटता है।
  • इस प्रक्रिया में डॉक्टर एक औषधीय धागे की मदद से भगंदर का इलाज करते हैं। इसे एक तरह की आयुर्वेदिक सर्जरी माना जा सकता है, जिसमें दर्द महसूस नहीं होता। धागा कई जड़ी-बूटियों से तैयार किया जाता है, जिससे इसे असरदार बनाया जाता है।
  •  जब कोई मरीज फिस्टुला लेकर डॉक्टर के पास आता है, तो डॉक्टर सबसे पहले उसकी पूरी जांच करते हैं। वे यह देखने की कोशिश करते हैं कि फिस्टुला किस स्टेज पर है और फिर उसके हिसाब से इलाज शुरू करते हैं। इसके लिए एक्स-रे या एमआरआई की सलाह दी जा सकती है।

अगर फिस्टुला नया है, तो आमतौर पर जल्दी आराम मिल जाता है। लेकिन अगर फिस्टुला पुराना है, तो इलाज में थोड़ा समय लग सकता है और मरीज को धैर्य रखना होगा। पुरानी फिस्टुला का इलाज भी क्षार सूत्र से किया जा सकता है।

अगर सर्जरी के बाद भी मरीज को फिर से फिस्टुला या पस की समस्या हो रही है, तो डॉक्टरों का कहना है कि क्षार सूत्र इलाज उस स्थिति में भी कारगर हो सकता है।

भगंदर के ईलाज में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए 

  • किसी भी कीमत में शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
  •  इसके अलावा नॉन वेज, व्‍हाइट शुगर प्रॉडक्‍ट्स, कैमिकल प्रॉडक्‍ट, मैदे से बनी चीजें, तली हुई चीजें और मिर्च-मसाले वाली चीजों को जितना हो सके अवॉइड करें। 
  • पतीता, सेब और अमरूद आदि फलों का सेवन करें।
  •  नियमित रूप से अपना पेट साफ करने के लिए मरीज को त्रिफला या इसबगोल की 1 से डेढ़ चम्‍मच लेनी चाहिए।
  •  एसिडिटी बिल्‍कुल न होने दें, अगर आपको हायपर एसिडिटी की समस्‍या है तो अपने डॉक्‍टर से इसे कंट्रोल करने के लिए दवा लिखवाएं।
  • खाना खाने के बाद आंवला खाया जा सकता है, रात को 5 ग्राम सौंफ और 5 ग्राम जीरा भिगा दें और सुबह उठकर इसे उबालें और हर्बल टी की तरह पिएं। ये डाइजेशन को बूस्‍ट करने में बहुत मददगार होता है। इसके अलावा दूध में अंजीर, महीने में 1 या 2 बार रात को सोते वक्‍त हरीतकी चूर्ण लेने से भी बहुत जबरदस्‍त लाभ मिलता है।

निष्कर्ष

भगंदर, जिसे एनल फिस्टुला भी कहा जाता है, एक गंभीर स्थिति है जो शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने की वजह से अधिक जटिल हो सकती है। इसके सामान्य लक्षणों में गुदाद्वार के आसपास सूजन, दर्द और पस का बहाव शामिल होते हैं। यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है और अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

इसकी पहचान और उपचार के लिए विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह की आवश्यकता होती है। सही समय पर सर्जरी और आधुनिक उपचार विधियों जैसे लेजर ट्रीटमेंट और स्टेम सेल थेरपी से भगंदर का इलाज संभव है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि फिस्टुला का इलाज सही तरीके से किया जाए और उपचार के बाद उचित देखभाल की जाए।

आपकी जीवनशैली और खानपान भी इस स्थिति के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फाइबर और प्रोटीन युक्त आहार, आयुर्वेदिक उपचार और स्वच्छता बनाए रखना इस समस्या को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, खाने में सावधानी बरतना और आहार में सुधार से भी लाभ हो सकता है।

समय पर उपचार और सही खानपान से भगंदर के लक्षणों को कम किया जा सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। यदि आप इन लक्षणों से परेशान हैं, तो तुरंत चिकित्सा परामर्श लेना न भूलें और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।

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