आज के बदलते हुए लाइफ स्टाइल और प्रदूषण ने समाज में बीमारियों को भी अच्छा खास उछाल दिया है। रोज हमें ऐसी खबरें देखने और सुनने को मिल रही हैं जिसने ने खाने पीने की चीज़ों में चल रही मिलावट खोरी का पर्दाफाश किया है। आम इन्सान तो क्या डॉक्टर्स के लिए भी आज कल बीमारी की जड़ पकड़ना जोख़िम से कम नहीं रहा। बदलते हुए लाइफस्टाइल में बहुत बार साधारण सी दिखने या महसूस होने वाली बीमारी कब घातक रूप ले लेती है पता ही नहीं चलता। इन बीमारियों में भी सबसे ज़्यादा पकड़ बनाने वाली बीमारियों में गुर्दे की पथरी, पित्त की पथरी, लीवर से जुड़ी बीमारियां,फैटी लीवर, बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल, हाई बल्ड प्रेशर आदि सब का नाम शुमार है।
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आज से लगभग 15- 20 साल पहले हालात ऐसे थे कि डायबिटीज़ की बीमारी होना भी बहुत बड़ी बात हुआ करती थी, लोगों का रहना सहना आज कल के मुकाबले बेहतर था। लेकिन आज कल तो 30 से 40 वर्ष का एक आम व्यक्ति लगभग अपने साथ 4 से 5 बीमारियां तो लेकर निकलता ही है, वृद्धों की तो बात ही छोड़िए।
ऐसे में पूरी तरह से साइंस और टेक्नोलॉजी ने भी मानव जीवन को बेहतर बनाने में हर मुमकिन कोशिश की है। हर बीमारी के हर मुमकिन टेस्ट और टैस्टिंग मशीनों का निर्माण करके हेल्थकेयर के क्षेत्र को भी बहुत फ़ायदा दिया है। वैसे तो बहुत सी मशीन हैं जैसे कि MRI, X-ray machine, CT scan machine आदि लेकिन इन सबके बीच सबसे आसानी और काम दाम पर उपलब्ध होने वाली मशीन है Ultrasound machine जिसके जरिए किया जाता है USG test।
कौन लाया इस टेस्ट को भारत में, और किसने किया यह टेस्ट पहली बार?
इस टेस्ट का आविष्कार करने वाले हैं पॉल लांगेविन (Paul Langevin)। इन्होंने इस बेहतरीन मशीन का आविष्कार लगभग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किया था। लेकिन अगर बात की जाए भारत की तो जब अमरीश दलाल, 80 के दशक के आसपास अमेरिका से अल्ट्रासाउंड इमेजिंग में अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत लौटे और अल्ट्रासाउंड में अपनी निजी प्रैक्टिस शुरू की। तब सन् 1983 में जसलोक अस्पताल द्वारा सबसे पहले एक बेहतरीन अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड विभाग की स्थापना की गई थी। जसलोक हस्पताल इस विभाग को स्थापित करने का पूरा श्रय देते हैं डॉ. मुकुंद जोशी को।
क्यों और किसके लिए किया जाता है USG test?
अगर हम USG test की बात कर रहें हैं तो सबसे पहले यह समझना ज़रूरी होगा कि यह टेस्ट क्यों और किसके के लिए किया जाता है। तो, USG test का पूरा नाम Ultrasound Sonography test है। यह एक ऐसा टेस्ट है जिसमें मेडिकल इमेजिंग की तकनीक का बहुत ही बेहतर तरीके इस्तेमाल हुआ है। इस टेस्ट की मदद से शरीर के अन्दर के हिस्सों या अंगो को भी आसानी से देखा जा सकता हैं और उनसे जुड़ी बीमारियों के बारे में पता लगा सकते हैं। यह टेस्ट हाई फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल करके शरीर के अंदर के अंगो की तस्वीर खींच सकता है।
अब सवाल यह आता है कि इस टेस्ट की सबसे ज़्यादा जरूरत किसे और कब होती है?
USG test की सलाह अक्सर उन मरीजों को दी जाती हैं जिन पर डॉक्टर को किसी भी घातक बीमारी के होने का डर होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी व्यक्ति के अंदरूनी हिस्से में कोई चोट लगी हो तो डॉक्टर USG test की मदद लेकर ही उसका पता कर पाते है। अगर मरीज को पेट से जुड़ी कोई समस्या है तो सबसे पहली बार में ही डॉक्टर की इस टेस्ट को करवाने की सलाह दे देते हैं। इस टेस्ट को लीवर से जुड़ी परेशानियां, आंतो से जुड़ी परेशानियां, गुर्दों और मूत्राशय से जुड़ी बीमारियों के पता लगाने के लिए किया जाता है।
जब डॉक्टर इस टेस्ट की सलाह दे देते है किसी भी USG lab में रेडियोलॉजिस्ट की मदद से यह टेस्ट करवाया जा सकता है।
गर्भ में पल रहे बच्चे की दिल धड़कन तक सुना सकता है यह टेस्ट
आज कल टीवी सीरियल्स और फिल्मों आदि में बहुत बार यह सीन दिखाया जाता है कि होने वाली मां अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को एक स्क्रीन पर देख कर खुश हो रही होती है। जी हां, यह मुमकिन हो सका है USG test की मदद से। यह टेस्ट इतना कारगर हैं कि मां के गर्भ में पल रहे बच्चे के शारीरिक गतिविधियों को भी आसानी से स्क्रीन पर दिखा सकता है। डॉक्टर बच्चे की दिल धड़कन का पता इसी टेस्ट से लगा पाते हैं। इतना ही नहीं, बल्कि हैरान करने वाली बात तो यह है की यह टेस्ट इस बारे में जानकारी दे सकता है की गर्भ में पलने वाले बच्चे को कोई शारीरिक विकार तो नहीं।
लेकिन टेस्ट से पहले रखना पड़ता है कुछ बातो का खास ध्यान ताकि न हो सके कोई चूक
मान लीजिए,कभी आपको या आपके किसी जानने वाले को इस टेस्ट की जरूरत पड़े तो कुछ खास बातो का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है।
- जब भी टेस्ट के लिए जाएं तो अपने डाक्टर से यह पूछ कर जरूर जाएं कि आपको यह टेस्ट खाली पेट करवाना है या कुछ खाने के बाद। क्योंकि खाने test रिपोर्ट मेरे बदलाव हो सकते हैं जिससे आपकी बीमारी का ठीक से पता न चल पाए। इसके पीछे का कारण डाक्टर बताते है कि जब भी हम खाना खा कर यह टेस्ट करवाते है गाल bladder की स्थिति अच्छी तरह से नहीं दिखती। जिसकी वजह से रिपोर्ट में रीडिंग ऊपर नीचे हो सकती है।
- अगर आप किसी USG lab में जाते है तो टेक्नीशियन आपको बार बार पानी पीने के लिए कहेगा क्योंकि जब आपके मूत्राशय में प्रेशर होगा, तभी यह टेस्ट अच्छी तरह से इमेज और रीडिंग दे सकेगा। जिससे डॉक्टर को आपकी रिपोर्ट समझने में आसानी होगी।
- इस टेस्ट से पहले घबराने की कोई बात नहीं है। यह टेस्ट बहुत ही आसानी से हो जाता है। टेस्ट शुरू करने से पहले रेडियोलॉजिस्ट आपके पेट पर एक जैल जैसा पदार्थ लगाता है और फिर एक यंत्र की मदद से आपके शरीर के अंदर देख पाता है। जहां जहां रेडियोलॉजिस्ट उस यंत्र को रखता है, मशीन से जुड़ी स्क्रीन वही हिस्सा दिखाती है। रेडियोलॉजिस्ट उस इमेज को डॉक्टरी भाषा में लिख कर रिपोर्ट तैयार करके देता है।