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अगर आप भी हैं बर्गर खाने के शौक़ीन, तो जानिए बर्गर खाने से शरीर में क्या होता है?

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फास्ट फूड क्रेविंग क्यों होती है?

जो लोग फास्ट फूड, जंक फूड जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन और अन्य मैदा से बनी हुई चीजें खाते हैं, उनका बार-बार फास्ट फूड खाने का मन क्यों होता है? आज हम इस लेख में जानेंगे कि हमें बार-बार फास्ट फूड खाने की क्रेविंग क्यों होती है और इन जंक फूड को खाने से हमारी बॉडी में क्या होता है।

तो सबसे पहले जानते हैं कि फास्ट फूड हमारी बॉडी में जाकर क्या करता है। जैसे ही पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन या मैदा से बनी हुई चीजें खाई जाती हैं, तो वे आपके मुंह से होकर आपके पेट में जाती हैं और पेट में जाकर ये काफी देर तक पड़ी रहती हैं। क्योंकि इनमें लाइव एंजाइम नहीं होते, इसके कारण ये लंबे समय तक पेट में पड़ी रहती हैं। जंक फूड बने होते हैं मैदा से।

इस आर्टिकल में हम किस किस चीज़ के बारेमे डिसकस करने वाले हे

पहले जाने मैदे की कहानी 

अब सबसे पहले ये जानते हैं कि मैदा बनता कैसे है। आटा और मैदा दोनों गेहूं से बनते हैं। गेहूं में तीन लेयर होती हैं। सबसे पहली लेयर को ब्रैन कहते हैं, मिडिल में होता है एंडोस्पर्म और सबसे लास्ट में होता है जर्म। इनमें जो सबसे पहली लेयर में होता है, वो है फाइबर, विटामिन बी और मिनरल्स, जो आपकी बॉडी के लिए अच्छे होते हैं। अब बीच में आता है एंडोस्पर्म, जो आपकी बॉडी के लिए अच्छा नहीं है। इसमें केवल कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं।

लास्ट में होता है जर्म, जो पूरी न्यूट्रिशन से भरपूर होता है। इसमें विटामिन बी, विटामिन ए, फाइटोकेमिकल्स और हेल्दी फैट्स होते हैं, जो बॉडी के लिए चाहिए होते हैं। मैदा एंडोस्पर्म से बना होता है, जो बॉडी के लिए अच्छा नहीं है। ये स्टार्च होने के वजह से चिपकता है।

फास्ट फूड खाने के तुरंत बाद कैसे होता है काम शुरू?

अब जैसे ही आप फास्ट फूड खाते हैं, तो पेट में जाकर ये लंबे समय तक पड़ी रहती है, क्योंकि ये डेड फूड है। इसमें कोई लाइव एंजाइम नहीं है। लंबे समय तक पेट में पड़े रहने से पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड रिलीज होता है, जिससे पेट में एसिडिटी बढ़ती है। जब ये हमारी पेट में छोटी आंत में जाता है, तो इसमें फाइबर न होने के कारण ये हमारी आंतों में चिपकने लगता है और लंबे समय तक आंतों में चिपका रहता है, जिससे वहां सूजन होने लगती है।

अब जहां सूजन होगी, वहां वायरस और बैक्टीरिया के कारण पेट में गैस भी बनेगी और वायरस-बैक्टीरिया के पनपने के कारण वहां इंफेक्शन भी होता है, जिसे हम स्टमक इंफेक्शन के नाम से जानते हैं। 

फास्ट फूड से पेट में सूजन और इंफेक्शन कैसे होता है?

इंफेक्शन होते ही आपको पेट में तेज दर्द होगा। फिर आप डॉक्टर के पास जाते हैं और डॉक्टर एंटीबायोटिक्स देते हैं। आप इन्हें चुपचाप ले लेते हैं और इससे आपको पेट दर्द से राहत मिलने लगती है।

इस एंटीबायोटिक्स से आप कैसे ठीक हो जाते हैं, कभी सोचा है? 

 हमें फास्ट फूड की क्रेविंग क्यों होती है?

तो चलिए इसका साइंस भी जान लेते हैं। बात 1908 की है। 1908 में जापान में दो सुजुकी ब्रदर्स एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट चलाते हैं। वे सोचते हैं कि हमारे रेस्टोरेंट का प्रॉफिट कैसे बढ़े। वे रेस्टोरेंट में आए हुए ग्राहकों का बिहेवियर नोटिस करते हैं। उन्होंने देखा कि जैसे ही ग्राहक का पेट भर जाता है, वह और खाना ऑर्डर करना बंद कर देता है। तब उनके दिमाग में एक विचार आया कि रेस्टोरेंट में आए ग्राहक का पेट कभी भरे ही ना, ताकि ग्राहक ज्यादा खाना ऑर्डर करें और उनका प्रॉफिट बढ़े।

तो आप पहले ये समझिए कि जब हमें भूख लगती है, तो ब्रेन का सिग्नल पेट तक पहुंचता है और हमें भूख का एहसास होने लगता है। आप एक बार के लिए इमेजिन कर लीजिए कि आपके ब्रेन में ट्रैफिक सिग्नल की तरह लाइट्स हैं। जब ब्रेन देखता है कि बॉडी को एनर्जी की जरूरत है, तो ग्रीन लाइट यानी कि स्टार्ट हार्मोन ग्रिलिन को ऑन कर देता है और हमें पेट में भूख का एहसास होने लगता है।

तो खाना खाने के बाद जब ब्रेन देखता है कि खाया हुआ खाना पर्याप्त है, तो वह ग्रीन सिग्नल को ऑफ करके रेड सिग्नल यानी कि स्टॉप हार्मोन लेप्टिन को ऑन कर देता है। तब आपको एहसास होता है कि अब और खाने की इच्छा या ज़रूरत ही नहीं है।

MSG का जादू: फास्ट फूड के पीछे की साइंस

सुजुकी ब्रदर्स कुछ वैज्ञानिकों से मिले और कहा कि आप कुछ ऐसा कर दो कि जो भी हमारे रेस्टोरेंट में खाने के लिए आए, उनका ग्रीन सिग्नल हमेशा के लिए ऑन रहे और रेड सिग्नल हमेशा के लिए ऑफ हो जाए, ताकि उन्हें खाना खाने के बाद भी भूख लगती रहे और वे खाना ऑर्डर करें और खाते रहें।

तो वैज्ञानिकों ने उनकी बात सुनी और एक केमिकल बनाया जिसका नाम है MSG यानी मोनोसोडियम ग्लूटामेट। सुजुकी ब्रदर्स को समझाया कि बस इसे अपने रेस्टोरेंट में खाने में मिला देना। MSG की यही खासियत है कि जैसे ही यह खाने से आपकी पेट तक पहुंचता है, तो यह सीधे ब्रेन में ग्रीन सिग्नल यानी कि स्टार्ट हार्मोन ग्रिलिन को लगातार ऑन कर देता है और साथ ही रेड सिग्नल यानी कि स्टॉप हार्मोन लेप्टिन को भी डिस्ट्रॉय कर देता है। इसका मतलब है कि आप जितना MSG वाला खाना खाएंगे उतना ही आपको ग्रीन सिग्नल ऑन रहेगा और रेड सिग्नल ऑफ रहेगा यानी कि खाना खाने के बाद भी भूख लगती रहेगी।

ऐसा लगातार कुछ सालों तक MSG मिले हुए फूड खाने से रेड सिग्नल यानी कि स्टॉप हार्मोन पूरी तरह से डैमेज हो जाता है और ऐसे लोग दिन भर खाना खाते रहते हैं और फिर भी उनकी भूख नहीं मिटती। आपने देखा होगा कि जिनको खाना खाने के बाद भी तुरंत भूख लगती है, यह जितने भी फास्ट फूड जैसे कि पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन, मोमोज, फ्रेंच फ्राइज लगभग सभी में MSG होता है। MSG को आप मिट्टी में मिलाकर खाएंगे तो वो भी आपको टेस्टी लगेगा।


घर पर बने आहार vs फास्ट फूड: क्यों है घर का खाना बेहतर?

अक्सर आपने देखा होगा कि जो जंक फूड मार्केट में मिलता है, जैसे पिज़्ज़ा, पिज़्ज़ा को आप अपने घर में बनाते हैं, तो रेस्टोरेंट वाला टेस्ट आपको नहीं आता। आपका बच्चा यही बोलेगा कि मम्मी, आपके पिज़्ज़ा में वो स्वाद नहीं है जो रेस्टोरेंट के बने पिज़्ज़ा में है। ध्यान देने वाली बात ये है कि जो पिज़्ज़ा आपको रेस्टोरेंट में टेस्टी लगता है, उसकी वजह है MSG यानी कि मोनोसोडियम ग्लूटामेट।

इसे आप खुद भी ट्राई करके देख सकते हैं। मार्केट से MSG यानी कि मोनोसोडियम ग्लूटामेट खरीदी है, जिसे हिंदी में अजीनोमोटो कहते हैं, उसे अपने खाने में मिलाकर खाएं। फिर आपको खुद ही पता चल जाएगा कि MSG कैसे ब्रेन पर असर डालता है।

फास्ट फूड के लगातार सेवन से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान

MSG लीड्स टू मेरी किड ऑफ लाइफस्टाइल डिजीज, जैसे डायबिटीज, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज, मेंटल डिसऑर्डर, ओबेसिटी आदि। अगर आप लगातार दो से चार साल तक फास्ट फूड का सेवन करते हैं, तब बॉडी में कई प्रकार के मिनरल्स और विटामिन्स की कमी हो जाती है। इससे कई सारे सिम्प्टम्स आने लगते हैं, जैसे बार-बार बीमार पड़ना, हमेशा थका-थका रहना, ओवरवेट होना, नींद का ना आना या फिर बहुत नींद आना, पढ़ाई में मन न लगना आदि।

ऐसे में अगर आप डॉक्टर के पास जाते हैं, तो डायग्नोसिस से पता चलता है कि कई सारे मिनरल्स और विटामिन्स की कमी है और फिर आपको विटामिन और मिनरल्स की गोलियां के साथ कई सारे हेल्थ सप्लीमेंट्स लेने की सलाह दी जाती है। विटामिन और मिनरल्स को समझने के लिए प्रैक्टिकल एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए एक पेशेंट में विटामिन सी की कमी है और डॉक्टर उसे विटामिन सी की गोलियां देते हैं। विटामिन सी के हाई इंटेक्स से कॉपर के एब्जॉर्प्शन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे कॉपर डिफिशिएंसी हो सकती है।

कॉपर की क्वांटिटी का सीधा कनेक्शन दिल की बीमारियों से होता है। अब विटामिन सी की गोलियों के कारण कॉपर की कमी हो रही है, और ये तो अब शुरू हुआ है। इस कमी के कारण एक तरफ हेल्थ का इशू बन गया है, तो दूसरी तरफ इसके लीड्स टू दूसरी साइड इफेक्ट्स, जो आपकी एक लम्बी जीवन की स्टाइल को बिगाड़ सकते हैं।

सोडियम और स्वास्थ्य: दिल और किडनी की समस्याएँ

अधिकतर फास्ट फूड में सोडियम की बहुत अधिक मात्रा होती है, जो आपके बॉडी में पानी को बनाए रखने की कोशिश करती है। साथ ही ये दिल की बीमारियों, हाइपरटेंशन, किडनी की समस्याओं का कारण भी बनती है।

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